जर्मी बेन्थम को उपयोगितावाद का जनक कहा जाता है। बेन्थम ने अपनी पुस्तक फ्रेगमेंट्स ऑन गवर्नमेंट मे अपने उपयोगिता वादी दर्शन का प्रतिपादन किया है बेन्थम अधिकतम लोगों के अधिकतम सुख को नैतिकता का अंतिम मापदंड मानता है अपने उपयोगितावाद को स्पष्ट करते हुए बेन्थम कहता है कि जो हमें सुख की अनुभूति देती है वह अच्छा है और उपयोगी है जिस वस्तु से हमें दुख की अनुभूति होती है वह बुरी और अनुपयोगी है बंधाम कहते हैं कि प्रकृति ने मानव को सुख-दुख नामक दो स्वामियों के अंतर्गत रखा है हम क्या करना चाहिए या हमें क्या करेंगे यह केवल वही निश्चित कर सकते हैं।
सुखों में मात्रा का भेद:-
बेंथम के अनुसार सुखों में परिणाम या मात्रा का ही अंतर होता है सुख की मात्रा समान होने पर स्केटबोर्ड का खेल भी उतना ही श्रेष्ठ है जितना की कहानी।
सुख दु:ख के स्रोत
बेंथम ने सुख-दुख के चार स्रोत बताएं
(1 )भौतिक ( 2 )नैतिक( 3 )धार्मिक( 4) राजनीतिक
(1) भौतिक :- प्रकृति से प्राप्त होने वाले सुख को भौतिक सुख कहा जाता है।
(2) नैतिक: – नैतिक दृष्टि से अच्छा या बुरा काम करने पर प्राप्त होने वाला सुख नैतिक सुख कहा जाता है
(3) धार्मिक:- धार्मिक मान्यताओं के अनुसार या उनके विरुद्ध काम करने पर प्राप्त होने वाला सुख या दु:ख
सुख कलन (सुख- दु:ख नियम)
बेंथम ने सूखों के (14) ओर दुखों के (12 ) प्रकार बताए है। बेंथम के अनुसार सुखों और दुखों को मापा जा सकता है। इसके 7 मापदंड है जो इस प्रकार -:
(1) तीव्रता( 2) अवधि( 3) निशिचतता( 4) निकटता अथवा दूरी( 5 )उत्पादकता (6) विशुद्धता( 7) विस्तार
(1) तीव्रता :-सुख दुख की गति से संबंधित है।
(2) अवधि:-सुख-दुख कितने समय तक रहेगा कितने समय तक नहीं रहेगा इसका पता चलता है अंत समय के अवधि निश्चित की जाती है
(3) निशिचतता:-कुछ सुख और दुख निश्चित प्रकृति के होते हैं जो यह निर्धारित कर देते हैं की इस कार्य को करने पर इतना सुख और कितना दुख मिलेगा यह निश्चित होता है।
(4 )निकटता अथवा दूरी:-सुख या दुख हमारे कितना पास में है या कितना दूर है इसका पता लगाया जाता है
(5) उत्पादकता:-एक सुख या एक दुख अपने साथ कितने सूखों या दुखो को अपने साथ लाता है यह इसकी उत्पादकता पर निर्भर होता है।
(6) विशुद्धता :- कोई सुख या दु:ख कितना पवित्र या शुद्ध है जितना अधिक में शुद्ध होगा इतनी ही अधिक तीव्रता होगी।
(7) विस्तार:- किसी सुख या दुख का कितने लोगों पर इसका असर पड़ता है यह उसके बिस्तर पर प्रभाव पड़ता है गर्मी बेंथम ने बिस्तर पर बहुत अधिक बल दिया उनका मानना था अधिकतम लोगों को अधिकतम सुख प्राप्त के विस्तार पर निर्भर करती है।
जर्नी बेंथम के अनुसार समस्त सुखों के मूल्यों को एक ओर तथा समस्त दुखों के मूल्यों को एक और एकत्रित कर देना चाहिए यदि एक को दूसरे में से घटाकर सुख जो पीछे बच ता है। तो वह कार्य ठीक है किंतु यदि दुख शेष बच जाए तो समझ लेना यह कार्य ठीक नहीं है और यह हमारे लिए उपयोगी नहीं है और हमें यह कार्य नहीं करना चाहिए

बुद्धिमुल्क उपयोगितावाद
सिजविक ने बुद्धिमूलक उपयोगितावाद सिद्धांत का प्रतिपादन किया था सिजविक के अनुसार हमें सुख का ज्ञान बुद्धि से होता है इंद्रियों से प्राप्त नहीं होता सिजविक ने व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में सुख विभाजन के तीन सिद्धांत बताए हैं।
(1) दूरदर्शिता( 2) परोपकार शीलता ( 3) न्याय
(1) दूरदर्शिता :- सीजविक अनुसार मैं अपने सुखों का चुनाव करते समय वर्तमान और भविष्य दोनों पर दृष्टि डालनी चाहिए हमें भविष्य के अधिकतम सुख के लिए थोड़े सुख का त्याग कर देना चाहिए यह दूरदर्शिता का सिद्धांत है जिसमें भविष्य का विचार किया जाता है।
(2) परोपकार शीलता :- परोपकार चलता हमें यह बतलाती है पर सुख भी उतना ही महत्व का है जितना की आत्म सुख । हम सब के सुख के विषय में निष्पक्ष होना चाहिए यह परोपकार शीलता का है जो अपने ओर दूसरों में सुख को विभक्त करने में सहायता प्रदान करता है।
3 न्याय:-सभी व्यक्ति सुख उपयोग के लिए समान रूप से सम्मान नहीं होते हैं न्याय व सिद्धांत है जो व्यक्तियों की योग्यता और उसकी पात्रता पर विचार करता है की कौन कितना सुख का उपयोग करेगा। जो उपयोग की अधिक योग्यता रखते हैं रुको लाभ प्राप्त करने का अवसर मिलना चाहिए वह इस प्रकार है।
1 बुद्धिजीवी 2 कलाकार 3 शिल्पकार
अतः में सीजविक स्वार्थ और निस्वार्थ में संबंध स्थापित करने में समर्थ नहीं है। वही दूरदर्शिता अपने ही अधिकतम सुख के लिए हमेशा तैयार रहती है वही परोपकार शीलता संपूर्ण जाति के लिए अधिकतम सुख का अनुकरण का आदेश देती है बुद्धि के दो विभिन्न आदेशों में विरोध है सिजविक के अनुसार से व्यावहारिक बुद्धि का दूसरा भाग कहा है।
