समाजवाद आधुनिक राजनीतिक युग में दोनों ही विपरीत विचारधाराओं मार्क्सवाद और कल्याण उदारवाद का मुख्य उद्देश्य रहा है समाजवाद जो की पाश्चात्य संस्कृति में चिंतन में 19 वी 20 वी शताब्दी मे विकसित हुआ है को सामान्यतः पुजीवाद के बिल्कुल विपरीत माना जाता है कुछ समय बाद में समाजवाद का अर्थ विश्व में तेजी से लोकप्रिय होने लगी। समाजवाद का अर्थ शोषण से मुक्त समतामूलक समाज और राष्ट्र की स्थापना करना है भारत समेत विभिन्न लोकतांत्रिक देशों ने समाजवादी उद्देश्यो को सांविधानिक मान्यता प्रदान की है।
समाजवादी अवधारणा का विकास
प्राचीन काल में यूनान के स्टाइक दर्शन ने आर्थिक समानता और सामाजिक न्याय का सिद्धांत दिया। मध्यकाल में थोमस मूर की प्रसिद्ध पुस्तक यूठोपिया ( 1516) में एक आदर्श समाजवादी राज्य की परिकल्पना प्रस्तुत की गई।17 वीं शताब्दी में बेकन ने अपनी पुस्तक न्यू अटलांटिस में समाजवादी विचारों का वर्णन किया गया। लेकिन समाजवाद की प्रगति की दिशा में फ्रांस की राज्य क्रांति 1789 एक मील का पत्थर साबित हुई जब क्रांति का नारा समानता स्वतंत्रता ओर बन्धुत्व को शामिल किया गया था उसी समय में फ्रांस के बेबियक ने समाजवादी सिद्धांतो की वकालत की बेबियफ के विचारों को बाद में ब्लैकी ने प्रसारित किया। 19 वी शताब्दी मे सन्त साईमन चार्ल्स फूरियर राबर्ट ओवन जैसे विचारकों ने पूंजीवाद के दोषो को मानवीय चेतना के आधार पर दूर कर सामाजिक और आर्थिक कल्याण की बात की प्रूधो ने अपनी पुस्तक वाट इज प्रोपर्टी में निजी सम्पत्ति को चोरी उपमा दी। राज्य को समाप्त करने की बात कहकर बकुनिन ओर अराजकतावादियों की एक नई समाजवादी परम्परा की शुरुआत कर दी । समाजवाद की विभिन्न धाराओं फेवियनवाद श्रेणी समाजवाद श्रमिक संघवाद का विकास हुआ है जार्ज बर्नार्ड शॉ जी डी कोल जार्ज सोरेन जेसे विचारों ने समाजवादी की सभी धाराओं के सिद्धांतो का प्रतिपादन किया।19 वी सदी में साम्यवाद मार्क्सवादी समाजवाद का जन्म हुआ। इसका विधिवत सिद्धांत की शुरुआत 1848 में कार्ल मार्क्स की पुस्तकें साम्यवाद घोषणा पत्र के साथ हुआ।
औघोगिक क्रांति जिसने कि शहरी श्रमिक वर्ग को जन्म दिया ओर समाजवादी क्रांति को उदगम हुआ था औधोगिक क्रांति की शुरुआत इंग्लैंड में हुई थी इसके बाद में इंग्लैंड को जनक कहा या घर कहां जाता है इंग्लैंड लोगों ओर उनके जीवन मूल्यों के कारण उनके द्वारा समाजवाद के विचारों को अपना लिया गया है ईसाई धर्म में बाइबल ओर साम्यवाद के एक विचारक कार्ल मार्क्स और साम्यवादी घोषणा पत्र की भांति समाजवाद का कोई एक विचारक या एक ग्रन्थ प्रेरणा स्रोत के रूप में नहीं है जो सभी समयों के लिए कानून बनाता है।
आर.एन.टानी रैम्जे मैकडोनाल्ड सिडनी ओर बेट्रिस बैल हेराल्ड लास्की क्लेमेण्ट एंट्री ओवन एफ.डाविन अमेरिका में नार्मन थामस ओर भारत राममनोहर लोहिया प. दीनदयाल उपाध्याय प. जवाहर लाल नेहरू प्रमुख रूप से जाना जाता है।
समाजवाद का आशय
समाजवाद प्रजातांत्रिक ओर समाजवाद इन दो विचारणाओं ओर व्यवस्था का समन्वित रूप है प्रजातांत्रिक मार्ग मतपेटी को अपनाकर ऐसे समाजवाद की स्थापना जो स्थापना के बाद भी लोकतांत्रिक मार्ग को अपनाकर ही अपने सभी कार्य करें उसे ही समाजवाद कहा जाता है और यह विचारधारा लोकतांत्रिक ओर समाजवादी दोनों को बनाया रखना चाहते हैं राजनीतिक क्षेत्र में इसकी आस्था मानवीय स्वतंत्रता पर आधारित उदारवादी दर्शन में है लेकिन राज्य के कार्य क्षेत्र में लोक कल्याणकारी राज्य के मार्ग को प्रशस्त करता है।
भारत में समाजवाद का विकास
भारत में समाजवाद की शुरुआत ब्रिटेन साम्राज्यवाद के खिलाफ किये जाने वाले राष्ट्रीय संघर्ष में ही हों गया था सर्व प्रथम सन 1929 में लाहौर अधिवेशन में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की कार्य समिति ने घोषित किया था इस समिति की राय में भारतीय जनता की भयंकर दरिद्रता विदेशीयों द्वारा किए गए शोषण के कारण ही नहीं समाज की आर्थिक व्यवस्था में क्रांतिकारी परिवर्तन करने पड़ेंगे।
इसी प्रकार 1931 में कराची अधिवेशन में कांग्रेस द्वारा संचालित प्रसिद्ध प्रस्ताव में कहा गया था कि यदि हम साधारण के लिए स्वराज को वास्तविक स्वराज बनना चाहता है तो इसका अर्थ केवल देश की राजनीति स्वतंत्रता से ही नहीं लेकिन साधारण आर्थिक स्वतंत्रता से भी है गांधी जी ने भारतीय आदर्शों और परिस्थितियों के अनुसार समाजवाद का प्रतिपादन किया। स्वातंत्र्योत्तर आन्दोलन के समय में ओर बाद में राममनोहर लोहिया प.दिनदयाल उपाध्याय जय नारायण व्यास सुभाष चन्द्र बोस नरेंद्र देव मानवेन्द्र राय प.जवाहरलाल नेहरू विभिन्न नेताओ ने समाजवादी विचारधारा को लोकप्रिय बनाने में ओर मानव गरिमा की स्थापना में महत्वपूर्ण योगदान रहा था।
स्वतन्त्रता प्राप्ति से लेकर अब तक शासक दल ओर विपक्ष सभी के द्वारा अपने आपको समाजवाद का पक्षधर माना जाता रहा है लेकिन व्यवहार में अब तक इस दिशा में जो कुछ किया गया है वह निश्चित तौर पे शंखनाद माना गया है क्योंकि आर्थिक आधार पर समाज पर समाज में खाई अब काफी बड़ी है।