मृदा के प्रकार एवं वितरण राजस्थान की मिट्टी को उनके उपजाऊपन कृषि के लिए उपयुक्तता और अन्य विशेषताओं के आधार पर विभिन्न भागों में बांटा गया है।
1 लाल और पीली मिट्टी-
इस प्रकार की मिट्टी (1) सिरोही ( 2) अजमेर (3) भीलवाड़ा के पश्चिमी भाग (4) सवाई माधोपुर के पश्चिमी भाग में पाई जाती है इस मिट्टी में दोमट और चीका दोनों प्रकार की मिट्टी मिलती हैं
2 जलोढ़ या कछारी मिट्टी –
इस प्रकार की मिट्टी राज्यके पूर्वी भागों में मुख्यतः नदियों के मैदान तथा घाटियों में इनका विस्तार हैं। (1)भरतपुर (2)धौलपुर (3)टोंक और (4)सवाई माधोपुर जिलों में इस मिट्टी का विस्तार हैं।
3 लाल- लोमी मिट्टी-:
इस मिट्टी का विस्तार राजस्थान के विभिन्न जिलों में है वह जिले इस प्रकार है:-1 उदयपुर जिले के मध्य एवं दक्षिणी भाग में 2 डूंगरपुर इनका मुख्य जिला है।
विशेषताएं चुनाव पोटाश लोहा -ऑक्साइड और फास्फोरस कम मात्रा में होता है। इसमें लोहे का अंश होने के कारण लालरंग दिखाई देता है उपजाऊपन की दृष्टि से सामान्य होती है। इसमें मक्का चावल गन्ना का उत्पादन होता है
4 लाल और काली मिट्टी –
इस मिट्टी का विस्तार राजस्थान के विभिन्न जिलों में (1)भीलवाड़ा (2)उदयपुर चित्तौड़गढ़(3 )डूंगरपुर (4)बांसवाड़ा
विशेषताएं -:इस मिट्टी में नाइट्रोजन कैल्शियम और कार्बनिक पदार्थ की कमी होती हैं और यह लाल मिट्टी मालवा की काली मिट्टी का विस्तार है इसमें सामान्यतः कपास मक्का की फसलों का उत्पादन होता है।
4 मध्य प्रकार की काली काली मिट्टी —
यह मिट्टी राजस्थान के हाड़ौती पठार के जिलों में विस्तार (1)कोटा (2)बूंदी (3)बारां (4)झालावाड़ में है।
विशेषताएं :- इस मिट्टी का गहरे भूरे से काले रंग तक होती है। इस मिट्टी में कछारी मिट्टी भी मिश्रण रूप में मिलती है।जो नदियों की की घाटियों में मिलती है फास्फोरस नाइट्रोजन और जैविक पदार्थ इसमें कम मात्रा में होता है लेकिन कैल्शियम और पोटाश उचित मात्रा में मिलता है। इस मिट्टी से व्यापारिक फसलों का उत्पादन होता है। इसमें मुख्य रूप से मूंगफली कपास और विभिन्न दालों के लिए उपयुक्त है।
