किशोरावस्था

Adolescence की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द एडोलसियर से हुई है जिसका अर्थ है परिपक्वता की ओर बढ़ना। अतः शाब्दिक अर्थ में किशोरावास्था मानव जीवन के विकास की अवस्था है जिसके माध्यम से बालक परिपक्वता की ओर बढ़ता है।

किशोरावस्था को दो भागों में बांटा जा सकता है-

१ पुर्व किशोरावस्था 12 वर्ष से 16 वर्ष

२ उत्तर किशोरावस्था 16 से 18 वर्ष तक

पुर्व किशोरावस्था में बालक पुर्ण किशोर नहीं हो सकता है माता -पिता व शिक्षक उसे छोटी छोटी बातों पर रोकते ओर मना करते हैं जिससे वह हमेशा समस्याओं में पड़ा रहता है। पुर्व किशोरावस्था को एक बड़ी चुनौती की अवस्था बताया गया है इस काल में शारीरिक विकास के साथ ही विकास के अन्य पक्षों में तेजी आ जाती है। इसीलिए इसे द्रुत एवं तीव्र विकास का काल भी कहते हैं कुछ मनोवैज्ञानिको ने इसे एक अटपटी या समस्याओं की आयु भी कहां है।

किशोरावस्था के विकास के सिद्धांत

१ त्वरित विकास का सिद्धांत —– (समर्थक स्टैनली हाल)

इस सिद्धांत के अनुसार किशोर में जो भी परिवर्तन होते हैं वे अचानक होते हैं उनका शेशव या बाल्यावस्था से कोई संबंध नहीं होता है।

२ क्रमिक विकास का सिद्धांत —— थार्नडाइक ओर हालिगवर्थ

इन विद्वानों का मानना है कि किशोरावस्था में जो शारीरिक मानसिक एवं सेवगात्मक परिवर्तन होते हैं वे अचानक न होकर धीरे-धीरे क्रमानुसार होते हैं।

किशोरावस्था के नाम

* जीवन का सबसे कठिन काल

*किशोरावस्था में एक अस्पष्ट वैयक्तिक स्थिति

* किशोरावस्था एक समस्या उम्र होती है

* किशोरावस्था विशिष्टता की खोज का समय होता है

* किशोरावस्था अवास्तविक का समय होता है

*किशोरावस्था वयस्कावस्था की चोटी कहते हैं

*स्वर्ण काल ( गोल्डन आयु)

*बसंत ऋतु

किशोरावस्था की प्रमुख विशेषताएं

1 सभी तरह का विकास

1 बुद्धि का अधिकतम विकास

3 विचारों और संवेगों में परिपक्वता

4 संवेदनात्मक परिवर्तन

5 नेतृत्व ओर विधायकता का विकास

6 दिवा स्वपन की प्रवृत्ति

7 स्थिरता ओर समायोजन का अभाव

8 घनिष्ठ एवं व्यक्तिगत भिन्नता

9 मानसिक स्वतंत्रता ओर विद्रोह की भावना

10 व्यवहार में भिन्नता

11 समूह को महत्व

12 रुचियों में परिवर्तन तथा स्थिरता

13 समाज सेवा की भावना

14 भगवान आत्म सम्मान की भावना

15 ईश्वर ओर धर्म में गहरा विश्वास

16 वीर पुजा की प्रवृत्ति

17 कल्पना का बाहुल्य

18 अपराध प्रवृति का विकास

19 स्थिति ओर महत्व की अभिलाषा

20 व्यवसाय चुनाव की चिंता

21 बहिमुर्खी प्रवृत्ति

22 सामाजिक स्वीकृति

23 काम भावना का विकास

किशोरावस्था से संबंधित विचारकों के कथन

स्टेनली हाल ——— किशोरावस्था प्रबल दबाव व तनाव तुफान ओर संघर्ष का काल है।।

रास ———– काम समस्त जीवन का नहीं तो किशोरावस्था का अवश्य ही मूल तथ्य है। एक विशाल नदी की बाढ़ के समान यह जीवन क्षेत्र के विशाल खण्डों को खींचता है एवं उपजाऊ बनाता है

किलपेट्रीक के अनुसार ——- किशोरावस्था जीवन का सबसे कठिन काल है ।

जान्स के अनुसार ——- किशोरावस्था शैशवास्था की पुनरावृत्ति है।।

स्टेनली हाल के अनुसार —- किशोरावस्था एक नया जन्म है क्योंकि इसी में उच्चतर श्रेष्ठतर मानव विशेषताएं प्रकट होती है।

किशोरावस्था में भोजन सम्बन्धी विकार

खानपान संबंधी विकार का वर्णन इस प्रकार कर सकते हैं यह विकार का एक समूह है जिसमें भोजन का सम्बन्ध व्यक्ति के शारीरिक व भावनात्मक अनियमितताओ से होता है इसका शरीर पर विपरीत प्रभाव पड़ता है परंतु किशोरावस्था पूर्व प्रौढ़ावस्था ओर महिलाओं में विकार सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं

खानपान सम्बन्धी विकारों के कारण निम्न प्रकार है

१ व्यक्तिगत

२ वातावरण

३मनोवैज्ञानिक

४ शारीरिक

५ सामाजिक

आहार संबंधी विकार निम्न

१ बुलीमिया नरवोसा

२ बिन्गी आहार विकार ( मोटापा)

३ ऐनोरेक्सिया नरवोसा

१ ऐनोरेक्सिया नरवोसा

यह एक मनोवैज्ञानिक ख़ान पान सम्बंधी विकास है जो लोग इस रोग से पीड़ित हैं वे सोचते हैं कि वे मोट हो रहें हैं लेकिन उनका भार सामान्य भार सामान्य भार से कम हो ऐसे लोग अपना भार नियंत्रण करने के लिए अपेक्षित भोजन की मात्रा में कमी करने लगते हैं और भुखे रहने लगते हैं

ऐनोरेक्सिया नरवोसा के लक्षण

१ अस्थियां पतली हो जाती है

२ बाल व नाखून टुटने लगते हैं

३ शरीर की त्वचा सूखी हो जाती है तथा उसका रंग पीला हो जाता है

४ शरीर का आंतरिक तापमान सामान्य से कम हो जाता है जिससे व्यक्ति को ठंड लगती है।

५ हर समय थकान लगती है

६ प्रजनन शक्ति कम होने लगती है

2 बुलीमिया नरवोसा

यह भी एक मनोवैज्ञानिक आहार संबंधी विकार है कुछ किशोर व किशोरियां सोचते हैं कि उन्हें कोई प्यार नहीं करता है और उनका ध्यान आकर्षित करने के लिए अत्यधिक मात्रा में खाना खाने लगते हैं और बाद में यह सोचकर की कहीं वज़न न बढ़ जाए उसे खाने को उगल देते हैं। साथ ही वज़न बढ़ने से बचने के लिए के लिए कई तरीके अपनाते हैं उल्टी करना व्यायाम करना दवाईयां का सेवन करना आदि। यह विकार ऐनोरेक्सिया नरवोसा की तुलना में एक दम विपरीत होता है।

बुलिमिया नरवोसा के लक्षण

1 गले के अन्दर खराश

2 मानसिक तनाव

3 आमाशय व आंतों से संबंधित समस्या होती है

4 शरीर से जल का निष्कासन अधिक होता है

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